Tuesday, August 12, 2008

नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद् द्वारा तुलसी जयंती मनाई गई


बीरगंज (नेपाल) ८ अगस्त । आज तुलसी जयंती के पावन अवसर पर नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद् द्वारा भव्य रुप से तुलसी जयंती मनाई गई । कार्यक्रम में प्रमुख अतिथी श्री विश्वनाथ साह थे । एवं मुख्य प्रवचन कर्ता मानस मर्मज्ञ विद्वान प्रो. रामाश्रय प्रसाद सिंह (अवकाश प्राप्त अध्यक्ष हिन्दी विभाग) एम एस कालेज मोतिहारी (भारत) से पधारे थे । कार्यक्रम का प्रारंभ द्वीप प्रज्वलन से हुआ । श्री रामचन्द्र कृपालु भजमन के सस्वर मधुर गायन से कार्यक्रम की शुरुवात की गई ।

स्वागत भाषण करते हुए ठाकुर राम क्याम्पस के हिन्दी के प्राध्यायपक प्रो. सचिच्दानन्द सिंह ने बडे ही सारगर्मित शब्दों में बिषय को रखा । राम चरित मानस हिन्दी के विकास मे इसका बडा योगदान रहा है और रहेगा । नेपाल में हिन्दी के सर्न्दर्भ में बोलते हुए बडी साफगोई से कहा कि हिन्दी को राजकीय मान्यता मिले न मिल, संविधान में स्थान मिले न मिले, हिन्दी तो पुरे नेपाल की उसके हृदयों को जोडने वाली भाषा है और रहेगी । इसे कोई मिटा नहीं सकता, वास्तव में यह नेपाल की राष्ट्रभाषा भले ही न हो लेकिन राष्ट्रिय संवाद की भाषा है । इसे झुठलाना नहीं चाहिए । हिन्दी राजकीय मान्यता की मोहताज नहीं है । यह स्वयं विकसित विस्तारित होती रहेगी।

इसके पश्चात मधुकरकंठी कवि श्री राम पुकार सिंह तुलसी रचित भजन का मीठे स्वर में गायन कर श्रोताओं को बांधने में पुरी तरह सफल रहे । श्री इन्द्रदेव कुवंर ने जिंदगी मौत से बेहतर लगी कविता पढकर वाह वाही लुटी ।

तुलसी जयंती के इस उपलक्ष्य पर मोतिहारी से आए मानस मर्मज्ञ रामायण को समर्पित व्यक्तित्व प्रा. रामश्रय प्रसाद सिंह ने ८० के होते हुए भी बडी ओजपुर्णॅ और खोजपुर्ण व्याख्या से श्रोताओ के हृदय में सीधे प्रविष्ट कर गए । उन्होने कहा कि संत तुलसी दास ने राम चरित मानस की रचना की, राम चरित्र मानस की नहीं । क्योंकि चरित में सर्वोगपुर्ण वर्णन होता है । साहित्य और संस्कृति के समाप्त होने से राष्ट्र समाप्त हो जाता है । ५०० बर्षो के बाद श्री तुलसी अमर है । तुलसी दास जी १२ ग्रन्थो की मुख्य रुप से रचना की । आज की मनोदशा का यथार्थ चित्र उन्होने उसी समय खींचा था । आज सज्जन चिंताग्रस्त है, लेकिन खल कुटिल हंसी हंस रहा है ।

उन्होने कहा कि रामायण बडे बूढों के लिए नहीं बल्कि युवाओं के लिए है । एक उदाहरण देते हुए समझाया की रेल्वे स्टेशन पर एक बुजुर्ग रामचरित पढ रहे थे । एक युवा दम्पति ने व्यंगपुर्णॅ लहजे मे कहा की यह कोई स्टेशन पर पढने की चीज है । कुछ देर बाद ट्रेन मे उस युवक को चिल्लाते देख उन्होन कारण पुछा तो उसने बताया की उनकी पत्नी स्टेशन पर ही छुट गई है । इस पर बुजुर्ग ने कहा की अगर रामचरित पढते तो एसा न होता । फिर उनहोने एक चौपाई दिखाई जिसमे लिखा था ....प्रिया चढाई चढे रघुराई....। यानी रामचन्द्र्जी पत्नी को चढा कर फिर खुद चढे ।

उन्होने बल देकर कहा कि विनय पत्रिका का ५६, ५७ और ५८ वें पद का पठन होना चाहिए । यह रामायण की कुंजी है । संसार के प्रति मोह का प्रतीक रावण है । दशाशीष मोह का प्रतीक है । कुभंकर्ण अहंकार का प्रतीक है । मेंघनाद काम का प्रतीक है । इसी प्रकार राम ज्ञान के, लक्ष्मण वैराग्य के और सीता भक्ति की प्रतीक है । उन्होने कहा की भक्ती तो मात समान है । वैराग्य और ज्ञान इसके पुत्र है ।

मानस के दैनिक पाठ का उन्होने आग्रह किया । उन्होने मानस की व्याख्या करते हुए कहा कि इसमे तीन बडा महत्व है । तीन नगर है, जनकपुर विदेह ज्ञान का अयोध्या व्यवहार का क्षेत्र और लंका देह भौतिकता का क्षेत्र है । मानस की तीन नारियो का उल्लेख करते हुए बताया कि ये कौशल्या, सुमित्रा और कैकैयी । मंथरा लोभ, शर्ुपर्नखा काम और ताडका क्रोध का प्रतिनिधित्व करती है । काम क्रोध लोभ ने संसार को वश में कर रखा है । राम ने पहला बध क्रोध ताडका का किया, जैसे कृष्ण ने पूतना का किया । मंथरा लोभ का प्रतीक है । अतः लोभ नियंत्रित हो । शुपर्नखा के बडे बडे नख थे जो कि काम का उपादान है । अतः नख काटने का चलन है । नाक और कान भी वासना के उपादान है । अतः उसके नाक और कान काटे गए ।

तुलसी दास ने आम लोगो को मनोगत की बात कही है । वशिष्ट के द्वारा निषाद का अभिवादन राम निषाद मिलन, सबरी के जुठे बैर खाना यह समाजिक भेदभाव को मिटाकर समरसता प्रेम सदभाव निर्माण करने का हेतु तुलसी का था । उन्होने स्पष्ट कहा कि रामायण तो एक सेतु की तरह है जो खाई को पाटता भी है और जोडता भी । तुलसी का व्यक्तित्व सेतु व्यक्तित्व है । शासको एवं नेताओं को सेतु समान व्यक्तित्व वाला होना चाहिए । राम ने केवल दिया । आज की तरह केवल लेने वाला नेता नहीं थे । अंत में उन्होने कहा कि आज वास्तव में चरित्र में बदलाव की आवश्यकता है ।

कार्यक्रम के अंतिम चरण में रक्सौल के कवि ब्रजेश लटपट ने "हिन्द और नैपाल की पहचान है तुलसी" कविता खूब सराही गई । गोपाल अश्क ने गजल और लाला माघवेन्द्र ने रामविवाह प्रसंग एवं कविता पाठ किया । सतीश सजल ने भी कविता पाठ किया । कार्यक्रम समापन में मुख्य अतिथी श्री विश्वनाथ साह ने संबोधित किया । कमलेश त्रिपाठी ने भी अंतिम समय में कविता वाचन किया । धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी साहित्य परिषद् के अध्यक्ष ओम प्रकाश सिकारिया ने किया । उन्होने कहा कि तुलसी के काल मे बडे बडे सेठ और राजा रहे होगे लेकिन ५०० साल बाद संत तुलसी की जयंती मनाई जा रही है । अतः ५०० साल बाद भी आज के किसी अपरिग्रही संत की जयंती मनाई जाएगी न की किसी नेता या धनवान की ।

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