जाने कब जाने का पैगाम आ जाए
- गोपाल अश्क
जाने कब जाने का पैगाम आ जाए
जिन्दगी की आखिरी शाम आ जाए
मत करो तुम दुश्मनी यहां किसी सो भी
क्या पता किस मोड पे कौन काम आ जाए
मत रुको चलते रहो चलना ही तो है सफर
क्या पता तुमसे मिलने खुद मुकाम आ जाए
मत देखो तुम राह जीने की जीते ही रहो
क्या पता कब मौत ही खुलेआम आ जाए
बच के रहो तुम यहां अपने ख्यालों से अश्क
क्या पता किस जुर्म में तेरा नाम आ जाए
लिखूंगा नव गीत लिखुंगा
-गोपाल अश्क
लिखूंगा, नव गीत लिखूंगा
वर्तमान और अतीत लिखूंगा
जहां चाहे जितना भी दर्द दे
पर हंसकर प्रीत लिखूंगा
क्या हारने की बातें करते हो
एक ना एक दिन जीत लिखूंगा
सागर में खोना नियति है
नदी की वफा-रित लिखूंगा
गम न करो अश्क अपनी भी
एक एक बात मीत लिखूंगा
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4 comments:
बहुत सुन्दर रचनाएं प्रेषित की हैं।आभार।
लिखते रहिए !
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद. निश्चित तौर पर हिंदी के विकास के लिए सहयोग की भावना का होना जरूरी है. आपके ब्लॉग को देखा, अच्छा प्रयास है, जारी रखें.
अच्छा ब्लॉग है ..अब आना होता रहेगा.
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